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ज्योतिर्लिंग दर्शन: भगवान शिव के प्रकाश स्तंभों का रहस्य और महत्व

प्रस्तावना (Introduction)

ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) शब्द, संस्कृत के दो शक्तिशाली शब्दों – ‘ज्योति’ (प्रकाश, दीप्ति) और ‘लिंग’ (शिव का निराकार स्वरूप) – के मेल से बना है। इस प्रकार, ज्योतिर्लिंग का शाब्दिक अर्थ है ‘प्रकाश का स्तंभ’ या ‘दिव्य प्रकाश का प्रतीक’। ये केवल पत्थर की मूर्तियां नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा के ऐसे केंद्र हैं जहाँ शिव की अनंत शक्ति साकार रूप में महसूस की जा सकती है। शिव पुराण और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इन बारह ज्योतिर्लिंगों का विस्तार से वर्णन मिलता है, जो पूरे भारतवर्ष में फैले हुए हैं। यह लेख आपको इन दिव्य ज्योतिर्लिंगों के रहस्य, उनकी पौराणिक उत्पत्ति और उनके गहन आध्यात्मिक महत्व से परिचित कराएगा। यह केवल जानकारी नहीं, बल्कि एक ऐसी अंतर्दृष्टि है जो आपको इन पवित्र स्थानों की दिव्यता को गहराई से समझने में मदद करेगी।

Table of Contents

ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति और पौराणिक कथाएँ

ज्योतिर्लिंग शब्द का अर्थ और उसका महत्व

ज्योतिर्लिंग शब्द केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक गूढ़ता और ईश्वरीय शक्ति का एक गहरा दर्शन है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ‘ज्योति’ का अर्थ है प्रकाश, आभा या दिव्य ज्ञान, जबकि ‘लिंग’ भगवान शिव के निराकार, अनंत और अविनाशी स्वरूप को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि शिव न तो पुरुष हैं न ही स्त्री, न उनका कोई आदि है न अंत। वे परब्रह्म हैं जो सभी सृष्टि के मूल में स्थित हैं। इस प्रकार, ज्योतिर्लिंग वह दिव्य ऊर्जा है जो प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुई, और जो शिव के निराकार स्वरूप को साकार रूप में भक्तों के समक्ष प्रस्तुत करती है। इसका महत्व इस बात में निहित है कि यह भक्तों को उस परम शक्ति का अनुभव कराता है जो शब्द और रूप से परे है, फिर भी प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी पर विद्यमान है। इन ज्योतिर्लिंगों में दर्शन करने से व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि वह ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ एक गहरा संबंध भी स्थापित कर पाता है। यह मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है और जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।

ब्रह्मा-विष्णु के विवाद और शिव के प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट होने की मुख्य पौराणिक कथा

ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति के पीछे की कथा शिव पुराण में विस्तार से वर्णित है, जो सृष्टि के आरंभिक काल की एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) और विष्णु (सृष्टि के पालक) के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर भीषण विवाद छिड़ गया। दोनों ही स्वयं को सर्वोच्च देवता सिद्ध करने का दावा कर रहे थे। जब यह विवाद अपने चरम पर पहुँच गया और सृष्टि का संतुलन डगमगाने लगा, तब अचानक एक विशाल, अनंत और तेजस्वी प्रकाश का स्तंभ (जिसे ज्योतिर्लिंग कहा गया) प्रकट हुआ। यह स्तंभ इतना विशाल था कि इसका न तो कोई आदि था और न कोई अंत; यह आकाश से पाताल तक फैला हुआ था।

ब्रह्मा और विष्णु दोनों इस अद्भुत ज्योतिर्लिंग के रहस्य को जानने के लिए उत्सुक हो उठे। उन्होंने निश्चय किया कि जो भी इस स्तंभ का आदि या अंत सबसे पहले खोज निकालेगा, वही सर्वोच्च होगा। ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और ऊपर की ओर उड़ान भरी ताकि वे उसके शीर्ष को देख सकें। वहीं, विष्णु ने वराह का रूप धारण कर पाताल की ओर यात्रा की ताकि वे उसके मूल को जान सकें। हजारों वर्षों तक अथक यात्रा करने के बाद भी, न तो ब्रह्मा उस ज्योतिर्लिंग के शीर्ष तक पहुँच पाए और न ही विष्णु उसके मूल तक। अंततः, दोनों थक हारकर वापस लौटे।

ब्रह्मा ने वापस आकर यह असत्य कहा कि उन्होंने स्तंभ का शीर्ष देख लिया है, जबकि विष्णु ने अपनी असफलता को विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लिया। तभी, उस अद्भुत प्रकाश स्तंभ के मध्य से स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने घोषणा की कि वे ही परम सत्य हैं, जो सृष्टि के आदि और अंत से परे हैं, और वे ही ब्रह्मा और विष्णु दोनों के जनक हैं। शिव ने ब्रह्मा के असत्य बोलने के कारण उन्हें पूजा से वंचित होने का श्राप दिया, जबकि विष्णु की ईमानदारी की सराहना की। यह घटना सिद्ध करती है कि शिव ही सर्वोच्च सत्ता हैं, और जहाँ-जहाँ यह अनंत प्रकाश स्तंभ (यानी ज्योतिर्लिंग) धरती पर प्रकट हुआ, वे स्थान भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और पूजनीय बन गए। यह कथा हमें शिव की अनादि, अनंत और सर्वव्यापी प्रकृति को समझने में मदद करती है, और ज्योतिर्लिंगों को उनके इसी स्वरूप का प्रत्यक्ष प्रमाण मानती है।

इनकी संख्या (12) और उनका सामूहिक आध्यात्मिक महत्व

Jyotirlinga-Darshan-12 Jyotirlingas
पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का वर्णन मिलता है, जो पूरे भारतवर्ष में भौगोलिक रूप से फैले हुए हैं। ये बारह ज्योतिर्लिंग सिर्फ मंदिर नहीं, बल्कि अपनी विशिष्ट ऊर्जा के शक्तिशाली केंद्र हैं और देश दुनियाँ के आध्यात्मिक मानचित्र पर अदृश्य उर्जचक्र निर्मित करते हैं। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का अपना अनोखा इतिहास है, लेकिन इन सभी का सामूहिक आध्यात्मिक महत्व अतुलनीय है।

इन बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन को द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा कहा जाता है, जिसे हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और जीवन बदलने वाला अनुभव माना जाता है। यह यात्रा केवल भौतिक रूप से मंदिरों का भ्रमण नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक pilgrimage है जो आत्म-शुद्धि, मन की शांति और गहन आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करती है। इन सभी ज्योतिर्लिंगों में, शिव की निराकार शक्ति अलग-अलग रूपों में विद्यमान है, और उनकी सामूहिक ऊर्जा ब्रह्मांड में सकारात्मकता और संतुलन का संचार करती है।

भक्तों का दृढ़ विश्वास है कि इन पावन स्थानों पर सच्चे मन से की गई पूजा-अर्चना और प्रार्थना से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह माना जाता है कि इन स्थानों पर स्वयं भगवान शिव अपने दिव्य प्रकाश के साथ निवास करते हैं, और उनके दर्शन से व्यक्ति को न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उसे परम आनंद और आंतरिक ज्ञान की प्राप्ति भी होती है। इन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा एक ऐसा अनुभव है जो भक्तों को अपनी जड़ों से जोड़ता है, उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, और उन्हें भारत की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत पर गर्व महसूस कराता है।

प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का संक्षिप्त परिचय और उसकी विशिष्टता

भारत के बारह ज्योतिर्लिंग शिव के विभिन्न रूपों और उनकी लीलाओं को दर्शाते हैं। यहाँ प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का संक्षिप्त परिचय और उसकी एक प्रमुख विशेषता दी गई है, जो आपको उनकी दिव्यता को समझने में मदद करेगी:

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (गुजरात):

 स्थान: गुजरात के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित।
 विशिष्टता: यह पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है और इसका इतिहास विदेशी आक्रमणों और पुनर्निर्माण की गाथाओं से भरा है, जो भारतीय आस्था की अटूटता का प्रतीक है। चंद्रमा (सोम) ने यहीं पर शिव की आराधना कर श्राप से मुक्ति पाई थी।

2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (आंध्र प्रदेश):

स्थान: आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में नल्लामाला पहाड़ियों पर स्थित।
विशिष्टता: यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो शक्तिपीठ भी है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है। यहां भगवान शिव (मल्लिकार्जुन) और देवी पार्वती (भ्रमराम्बा) एक साथ पूजे जाते हैं।

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (मध्य प्रदेश):

 स्थान: मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित।
विशिष्टता: यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है और यहाँ प्रतिदिन प्रातःकाल होने वाली भस्म आरती के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, जहाँ शिवलिंग को श्मशान की ताजी राख से स्नान कराया जाता है।

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (मध्य प्रदेश):

स्थान: मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी में एक ‘ओम’ आकार के द्वीप पर स्थित।
विशिष्टता: यह द्वीप पर स्थित है और इसमें ओंकारेश्वर (मुख्य ज्योतिर्लिंग) और ममलेश्वर (नर्मदा के दक्षिणी तट पर) दोनों शामिल हैं, जो ‘ओम’ ध्वनि की दिव्यता को दर्शाते हैं।

5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तराखंड):

स्थान: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में गढ़वाल हिमालय में स्थित, 3,583 मीटर की ऊंचाई पर।
विशिष्टता: यह सबसे दुर्गम ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो केवल छह महीने (अक्षय तृतीया से दीवाली तक) के लिए खुलता है। इसकी कथा पांडवों से जुड़ी है और यह पंच केदार का भी हिस्सा है।

6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र):

स्थान: महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पहाड़ियों के घने जंगलों में स्थित।
विशिष्टता: यह भीमा नदी का उद्गम स्थल है। यहाँ भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, और माना जाता है कि उनके पसीने से ही भीमा नदी का जन्म हुआ।

7. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तर प्रदेश):

स्थान: उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) शहर में गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित।
विशिष्टता: काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है, और यह ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है, जहाँ माना जाता है कि प्रलय आने पर शिव स्वयं इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं।

8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र):

स्थान: महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित।
विशिष्टता: यह गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है, जिसे दक्षिण गंगा भी कहते हैं। इस ज्योतिर्लिंग में तीन छोटे लिंग (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) हैं, जो इसे अद्वितीय बनाते हैं।

9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (झारखंड):

स्थान: झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ धाम (हालांकि इस ज्योतिर्लिंग के स्थान पर कुछ विवाद हैं)।
विशिष्टता: इसे ‘कामना लिंग’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन में यहाँ लाखों भक्त कांवर यात्रा कर जल अर्पित करने आते हैं।

10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (गुजरात):

स्थान: गुजरात के द्वारका शहर के पास स्थित।
विशिष्टता: यह भगवान शिव का एक ऐसा स्वरूप है जो सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। मंदिर परिसर के बाहर शिव की 82 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा है।

11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (तमिलनाडु):

स्थान: तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर, बंगाल की खाड़ी में स्थित।
विशिष्टता: यह भारत के चार धामों में से एक है। भगवान राम ने यहीं पर लंका जाने से पहले रेत का शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा की थी, जिससे यह ‘सेतुबंध रामेश्वरम’ के नाम से भी जाना जाता है।

12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र):

स्थान: महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफाओं के पास वेरुल गांव में स्थित।
विशिष्टता: यह अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसकी कथा घुश्मा नामक शिव भक्त महिला से जुड़ी है, जिसके भक्ति से प्रसन्न होकर शिव यहाँ प्रकट हुए थे। यह एलोरा गुफाओं के पास होने से पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

ज्योतिर्लिंग दर्शन का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

ज्योतिर्लिंगों की यात्रा और उनके दर्शन का महत्व केवल धार्मिक कृत्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है जो व्यक्ति के जीवन को कई स्तरों पर प्रभावित करता है।

भक्तों के लिए इन स्थलों की यात्रा क्यों महत्वपूर्ण है (मोक्ष, मनोकामना पूर्ति, आत्म-शांति)

करोड़ों भक्तों के लिए, इन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा एक पवित्र pilgrimage है जिसका उद्देश्य अपने आराध्य भगवान शिव के साक्षात स्वरूप के दर्शन करना है। यह आस्था का एक दृढ़ प्रतीक है कि इन स्थानों पर शिव आज भी अपने दिव्य प्रकाश के साथ विराजमान हैं और अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं। यह विश्वास है कि इन पावन स्थलों के दर्शन मात्र से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और उसे परम कल्याण की प्राप्ति होती है। कई भक्त अपनी विशिष्ट मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इन मंदिरों में आते हैं – चाहे वह स्वास्थ्य, धन, संतान प्राप्ति हो, या जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति। वे दृढ़ता से मानते हैं कि इन दिव्य ऊर्जा केंद्रों में सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएँ सीधे भगवान शिव तक पहुँचती हैं और उन्हें पूर्ण करती हैं। इसके अतिरिक्त, यह यात्रा आत्म-शुद्धि का एक मार्ग है, जहाँ व्यक्ति सांसारिक मोहमाया से दूर होकर अपने आंतरिक स्वरूप से जुड़ता है, जिससे उसे असीम शांति और मानसिक संतोष मिलता है। यह यात्रा अंततः मोक्ष की ओर अग्रसर करती है, जो हिंदू धर्म में जीवन का परम लक्ष्य माना जाता है।

इनकी यात्रा से मिलने वाले आध्यात्मिक, मानसिक और सांस्कृतिक लाभ

ज्योतिर्लिंगों की यात्रा एक समग्र परिवर्तनकारी अनुभव है जो व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है:
आध्यात्मिक लाभ: सबसे प्रमुख लाभ आध्यात्मिक है। इन पवित्र स्थलों पर पहुँचने से मन शांत होता है, और आत्मा को असीम शांति मिलती है। दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है, जो ध्यान और आत्म-चिंतन में सहायता करता है। यह यात्रा भक्तों को भगवान शिव के करीब लाती है और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है।
मानसिक लाभ: लंबी यात्राओं और विभिन्न स्थानों पर आने वाली चुनौतियाँ व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत बनाती हैं। नए लोगों से मिलना, विभिन्न जीवनशैलियों को देखना और अनजाने परिवेश में सामंजस्य बिठाना दृष्टिकोण को व्यापक बनाता है। यह तनाव कम करने और मन को नकारात्मक विचारों से मुक्त करने में सहायक होती है, जिससे मानसिक स्पष्टता आती है।
सांस्कृतिक लाभ: यह यात्रा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जानने और समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है। आप विभिन्न राज्यों की स्थापत्य कला की विविधता, स्थानीय रीति-रिवाजों, पारंपरिक व्यंजनों और जीवन शैली का अनुभव करते हैं। यह एक सांस्कृतिक विनिमय है जो आपकी समझ और सम्मान को बढ़ाता है, और आपको भारत की विविध एकता का firsthand अनुभव देता है। प्रत्येक मंदिर परिसर की अपनी एक कहानी है, जो भारतीय इतिहास और कला के गौरवशाली अतीत को दर्शाती है।

भारतीय संस्कृति और इतिहास में इनका क्या स्थान है?

ज्योतिर्लिंगों का भारतीय संस्कृति और इतिहास में एक केंद्रीय स्थान है। ये केवल पूजा के स्थल नहीं, बल्कि ऐसे जीवित स्मारक हैं जो हजारों वर्षों से हमारी सभ्यता की आध्यात्मिक जड़ों को संजोए हुए हैं। ये मंदिर भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला और इंजीनियरिंग के अद्भुत उदाहरण हैं, जो विभिन्न राजवंशों और युगों के योगदान को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, सोमनाथ मंदिर का कई बार विध्वंस और पुनर्निर्माण भारतीय आस्था की अदम्य भावना को दर्शाता है। काशी विश्वनाथ का ऐतिहासिक महत्व और उसके चारों ओर विकसित हुई ज्ञान और भक्ति की परंपरा भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इन ज्योतिर्लिंगों के इर्द-गिर्द कई लोककथाएँ, भजन, कविताएँ और शास्त्रीय नृत्य विकसित हुए हैं, जो हमारी कला और साहित्य को समृद्ध करते हैं। ये स्थल धार्मिक पर्वों और मेलों के केंद्र भी हैं, जहाँ देशभर से लोग एकत्र होते हैं, जो सामाजिक समरसता और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है। भारतीय इतिहास के कई महत्वपूर्ण मोड़ इन मंदिरों से जुड़े हुए हैं, जिससे ये न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक शोध के भी महत्वपूर्ण बिंदु बन जाते हैं। संक्षेप में, ज्योतिर्लिंग भारतीय सभ्यता के आध्यात्मिक आधारस्तंभ हैं, जो हमारी संस्कृति को परिभाषित करते हैं और पीढ़ियों से आस्था और प्रेरणा का स्रोत रहे हैं।

निष्कर्ष (Conclusion for Part 1)

हमारी यह विस्तृत यात्रा, ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlinga) की गहन दुनिया में झांकने के साथ, हमें भगवान शिव की अनंत महिमा और उनकी दिव्य उपस्थिति का एक अद्भुत परिचय देती है। हमने देखा कि कैसे ये बारह ज्योतिर्लिंग, ‘प्रकाश के स्तंभ’ के रूप में, केवल मंदिर नहीं हैं, बल्कि वे ब्रह्मांडीय ऊर्जा के ऐसे शक्तिशाली केंद्र हैं जहाँ स्वयं महादेव निवास करते हैं। इनकी उत्पत्ति की पौराणिक कथाएँ हमें सृष्टि के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराती हैं, जबकि प्रत्येक ज्योतिर्लिंग की अपनी विशिष्टता हमें भारतीय संस्कृति और आस्था की विविधता का अनुभव कराती है।
इन पावन स्थलों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व अतुलनीय है। वे भक्तों के लिए मोक्ष, मनोकामना पूर्ति और आत्म-शांति के द्वार खोलते हैं, और साथ ही भारत की समृद्ध विरासत, कला और इतिहास को भी दर्शाते हैं। यह पहला भाग आपको ज्योतिर्लिंगों की दिव्यता और उनके महत्व की गहरी समझ प्रदान करता है, जिससे आप इन पवित्र स्थानों से भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से जुड़ सकें।
यह तो बस शुरुआत है! ज्योतिर्लिंगों की इस अद्भुत यात्रा को वास्तव में अनुभव करने के लिए एक सटीक योजना की आवश्यकता होती है। हमारा अगला भाग, “ज्योतिर्लिंग यात्रा कार्यक्रम: भारत के सबसे पवित्र स्थलों की आध्यात्मिक यात्रा की योजना”, आपको इन दिव्य स्थानों तक पहुँचने, अपनी यात्रा की योजना बनाने और उसे यादगार बनाने के लिए सभी व्यावहारिक जानकारी प्रदान करेगा। अब आप इन ज्योतिर्लिंगों के महत्व से परिचित हो चुके हैं, तो तैयार हो जाइए अपनी स्वयं की आध्यात्मिक यात्रा की योजना बनाने के लिए!

ज्योतिर्लिंग” शब्द दो शब्दों से बना है: ‘ज्योति’ (प्रकाश) और ‘लिंग’ (शिव का निराकार स्वरूप)। ये वे पवित्र स्थल हैं जहाँ भगवान शिव स्वयं दिव्य प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। इन्हें धरती पर शिव की प्रत्यक्ष उपस्थिति का सबसे प्रबल प्रमाण माना जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार, भारत में कुल बारह (12) प्रमुख ज्योतिर्लिंग हैं, जो पूरे देश में फैले हुए हैं। इन सभी के दर्शन को ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा’ कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद के दौरान, भगवान शिव एक विशाल, अनंत प्रकाश स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट हुए थे। यह स्तंभ ही ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति का मूल माना जाता है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जबकि घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
ज्योतिर्लिंग दर्शन का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इनके दर्शन से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा आत्म-शुद्धि, मन की शांति और गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।

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